क़ुरबत से ग़ुरबत का सफ़र ही ज़िंदगी है,
समझो तो इश्क़ है, वरना बस ज़िंदगी है।
क़ुरबत से ग़ुरबत का सफ़र ही ज़िंदगी है,
समझो तो इश्क़ है, वरना बस ज़िंदगी है।
सर्दी की ओस में कुछ यादें ताज़ा हैं,
वो कही अनकही कुछ बातें ताज़ा हैं।
माना सूख गए हैं अश्क़ तुम्हारे भी,
इन आँखों में अभी कुछ आहें ताज़ा हैं।
मुर्झा गए हैं फूल अब कब्र पर हमारे,
फूल-ए-सेहरा में कुछ सासें ताज़ा हैं।
बेसब्र हैं लोग, और बेशर्म मिज़ाज,
बेबस हैं रिश्ते, और बेहिस समाज।
एहसानों की बात कर लेते हैं,
फ़सानों की बात कर लेते हैं।
मिलते हैं मरकज़े इश्क़ से तो,
एहसासों की बात कर लेते हैं।
गफ़लत-ए-इश्क़ में हलाल हो गए,
जाने कितने उनको मलाल हो गए।
थी कभी मोहब्बत हमको इस क़दर,
शाम थी हसीन, दिन गुलाल हो गए।
करने लगे शिकवे वो शाम-ओ-सहर,
जो थे छोटे गिले, बड़े सवाल हो गए।