क़ुरबत से ग़ुरबत का सफ़र ही ज़िंदगी है,
समझो तो इश्क़ है, वरना बस ज़िंदगी है।
क़ुरबत से ग़ुरबत का सफ़र ही ज़िंदगी है,
समझो तो इश्क़ है, वरना बस ज़िंदगी है।
सर्दी की ओस में कुछ यादें ताज़ा हैं,
वो कही अनकही कुछ बातें ताज़ा हैं।
माना सूख गए हैं अश्क़ तुम्हारे भी,
इन आँखों में अभी कुछ आहें ताज़ा हैं।
मुर्झा गए हैं फूल अब कब्र पर हमारे,
फूल-ए-सेहरा में कुछ सासें ताज़ा हैं।
बेसब्र हैं लोग, और बेशर्म मिज़ाज,
बेबस हैं रिश्ते, और बेहिस समाज।
तेरे इश्क़ में हम यूँ बेहाल होते गए,
यूँ तो थे यूपी के, बंगाल के होते गए।
मेहनत के काम ने ना दिया साथ मेरा,
कमाने चले थे पैसे, पर कंगाल होते गए।
आए थे मिलने महबूब से छुपते छुपाते,
ढूँढने आए थे सुकून, पर बवाल होते गए।
सुनसान सी उन राहों से एक आवाज़ आती है,
बीते ज़माने की कई यादों की याद दिलाती है।
सोचा कई बार उन गलियों से फिर हों रूबरू,
वो जर्जर हवेली बेरुख़ी की दास्तान सुनाती है।
कई साल, कई युग बीते, अपनों की राह तक़ते,
सुनी आँखें, बिन कहे, कई अफ़साने सुनाती है।
सोचा नहीं था ज़िंदगी भी इस मुक़ाम पे लाती है,
सपनों की चाह में, ये अपनों से दूर ले जाती है।
हर बात को समझना ज़रूरी तो नहीं,
हर शक़्स को परख़ना ज़रूरी तो नहीं।
ज़रुरी है वक़्त रहते सबक़ सीख़ लें,
हर वक़्त का ठहरना ज़रूरी तो नहीं।
है बरक़त इश्क़ की इबादत में लेकिन,
हर ख़्वाब का सँवरना ज़रूरी तो नहीं।
है मुम्किन हासिल हो ये मर्हला मुझे,
राहे इश्क़ में भटकना ज़रूरी तो नहीं।
थक गए इम्तिहान-ए-ज़िंदगी दे कर,
हर मोढ़ पर आज़माना ज़रूरी तो नहीं।