सुनसान सी उन राहों से एक आवाज़ आती है,
बीते ज़माने की कई यादों की याद दिलाती है।
सोचा कई बार उन गलियों से फिर हों रूबरू,
वो जर्जर हवेली बेरुख़ी की दास्तान सुनाती है।
कई साल, कई युग बीते, अपनों की राह तक़ते,
सुनी आँखें, बिन कहे, कई अफ़साने सुनाती है।
सोचा नहीं था ज़िंदगी भी इस मुक़ाम पे लाती है,
सपनों की चाह में, ये अपनों से दूर ले जाती है।