गफ़लत-ए-इश्क़ में हलाल हो गए,
जाने कितने उनको मलाल हो गए।
थी कभी मोहब्बत हमको इस क़दर,
शाम थी हसीन, दिन गुलाल हो गए।
करने लगे शिकवे वो शाम-ओ-सहर,
जो थे छोटे गिले, बड़े सवाल हो गए।
गफ़लत-ए-इश्क़ में हलाल हो गए,
जाने कितने उनको मलाल हो गए।
थी कभी मोहब्बत हमको इस क़दर,
शाम थी हसीन, दिन गुलाल हो गए।
करने लगे शिकवे वो शाम-ओ-सहर,
जो थे छोटे गिले, बड़े सवाल हो गए।