एहसानों की बात कर लेते हैं,
फ़सानों की बात कर लेते हैं।
मिलते हैं मरकज़े इश्क़ से तो,
एहसासों की बात कर लेते हैं।
एहसानों की बात कर लेते हैं,
फ़सानों की बात कर लेते हैं।
मिलते हैं मरकज़े इश्क़ से तो,
एहसासों की बात कर लेते हैं।
गफ़लत-ए-इश्क़ में हलाल हो गए,
जाने कितने उनको मलाल हो गए।
थी कभी मोहब्बत हमको इस क़दर,
शाम थी हसीन, दिन गुलाल हो गए।
करने लगे शिकवे वो शाम-ओ-सहर,
जो थे छोटे गिले, बड़े सवाल हो गए।