गफ़लत-ए-इश्क़…

गफ़लत-ए-इश्क़ में हलाल हो गए,

जाने कितने उनको मलाल हो गए।

थी कभी मोहब्बत हमको इस क़दर,

शाम थी हसीन, दिन गुलाल हो गए।

करने लगे शिकवे वो शाम-ओ-सहर,

जो थे छोटे गिले, बड़े सवाल हो गए।

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